में में ....
में में ही करता रहा 
में में ही किये जाय 
इसी में के कारणे 
में ही काटा जाये ! 
में ही में को ढूंढता 
मैं को में की प्यास 
में हटे तब ही मिटे 
में मैं की ये प्यास ! 
में में करें क्या होत है 
चाहे जितना मिमियाओ 
में का कोई तर्पण नहीं 
में अर्पण कर में पाओ ! 
डा इन्दिरा ✍
मैं का विलाप प्रचार करते लोगों को बाख़ूबी लताड़ा है ... अच्छाईयों रचना है ...
ReplyDeleteअतुल्य आभार
Deleteवाह वाह!!सुंदर सृजन।
ReplyDeleteअतुल्य आभार बहन शुभा जी
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