मित्र ...
मित्र शब्द नहीं एक भाव है 
सतत प्रवाहित सो  हुई जाय 
जाके हिय में जाय बस गयो 
वो समपूरन सो हुई जाय ! 
मित्र एक गणितज्ञ हो 
सुख जोड़े दुख घटाय
गलती हो तो हाथ पकड़ कर 
हक से रोके आय ! 
मित्र व्यक्तिगत ना लगे 
हिय में जाय समाय 
सिक्के को दो पहलू जैसे 
सब को देय बुझाय ! 
डा इन्दिरा .✍
मैत्री पर आप की रचना बहुत ही सुन्दर है ....सत्य है की मैत्री से जादा नजदीकी रिश्ता कोई नही होता क्यों की मित्र का चयन हम खुद करते हैं और वो भाग्यशाली हैं ज़िन्हे सच्चा मित्र मिले ...जैसे हमें आप
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना सदज्ञान देती ।
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