भस्म करो या तृप्त करो ....
आंखों में भर ओज का रौरव 
उठ भी जाओ सोते क्यों हो 
शिवा प्रताप के तुम हो वंशज 
हैरानी सी बोते क्यों हो ! 
जिन आंखों में ज्वाला धधके 
बांह उन्हीँ की रह रह फडके 
शिवा अंश फिर रक्त बीज बन 
उष्ण रक्त को बहने दो ! 
अरि रक्त बहे धरती पर 
नर मुन्डो का इतिहास रचो 
त्राही त्राही कर रही धरा 
तुम सावन बन कर बरसों ! 
आर्तनाद चहुंओर गूंजता 
छाती फटती है सुन कर 
आजाद भगत सुखदेव रूप धर 
फिर आजाओ धरती पर ! 
भारत भूमी चीत्कार कर रही 
भस्म करो या तृप्त करो 
तिल तिल कर यूं कण कण जलना 
दारुण दुख से मुक्त करो ! 
खुल कर श्वास नहीं ले पाती 
घुट घुट कर ही जीती हूँ 
अभिशप्त अहिल्या सा तन लेकर 
नित  शाप को ढोती हूँ ! 
कोई तो राम बनो जग  में 
शापित माँ का उद्धार करो 
या चक्र सुदर्शन ले नारायण 
फिर महाभारत आगाज करो ! 
इस पार या उस पार रहे जीवन 
त्रिशंकु सा जीवन क्या जीना 
लड़ो , जीतो , या वीरगति पाओ 
माँ भारती का हो चौड़ा सीना ! 
डा इन्दिरा गुप्ता ✍
 
 
कोई तो राम बनो जग में
ReplyDeleteशापित माँ का उद्धार करो
या चक्र सुदर्शन ले नारायण
फिर महाभारत आगाज करो !
बेहतरीन रचना 👌👌👌👌 इंदिरा जी
अतुल्य आभार 🙏
DeleteAadhunik bharat ki subhadra kumari chauhan...👌😍😘👍
ReplyDeleteअतुल्य आभार ..नाम नहीं है आपका खैर aap.जो भी है बहुत बड़ी बात कह गये मित्र !
Deleteआ .सुभद्रा जी की पाँव की धूल भी बन जाऊं तो तर जाऊं ..पर आपकी सराहना ने जबरदस्त उत्साह वर्धन किया तहे दिल से आभार !
माँ के गौरव के लिए उसके पुत्रों को उठाना होता है ...
ReplyDeleteचक्र उठाना होता है ... तांडव करना होता है ...
बहुत ओजस्वी रचना ...
शुक्रिया दिगम्बर जी आपकी सराहना लेखनी का उत्साह वर्धन
ReplyDeleteओज से भरी ललकार ती वीर रस से भरी अप्रतिम रचना ।
ReplyDelete