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चरमर पत्ते

सूखे सूखे
चरमर पत्ते
आहट से
चर्राते से !
दबे पाँव से 
आती यादै
फिर भी
आस जगाते से !
सोई मुश्किल से
खामोशी
अचकचा के
जाग गई !
सालों लगे
सुलाने मैं
अब
सालों लगे
बहलाने मैं !
खामोशी को
तोड़ने वालों
खामोशी
एक रवायत है !
इसे तोड़ना
जुर्म  नहीं
पर आहट करना
एक गुनाह ! !

डा इन्दिरा ✍

Comments

  1. सुंदरता से प्रेषित भाव सखी,

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 30 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर ,सार्थक और सटीक रचना

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  4. अत्यंत सूक्ष्मता से दिया गया संदेश....
    खामोशी एक रवायत है, आहट करना एक गुनाह !!!

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  5. सचमुच ------खामोशी -एक रवायत है ! पर इस रवायत का सम्मान करना हरेक को आता कहाँ है प्रिय सखी | बहुत अच्छा लिखा आपने हमेशा की तरह | सस्नेह -----

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  6. लाजवाब प्रस्तुति....
    वाह!!!

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