दूर रहो तनी बात ना करो
सखियन मैं हँसी कराई जी
अपने आप तो करो तमाशों
अब नाहक करो चतुराई जी !
तू छलिया चितचोर बड़ों है
छल करत देत दुहाई जी
तनि दूर खड़े रहो मोहन
ना चहिये कोई सफाई जी !
काहे संदेसौ भेजो मोहन
अब काहे मोहे बुलायौ जी
जो तेने मेरी बहियाँ पकड़ी
नंद बाबा से करूं दुहाई जी !
जा रे जा तू कृष्ण कन्हाई
देख लई तेरी चतुराई
कहे कछु और कछु करत है
बने सयानों करें घूर्त्तताई जी !
पर कान्हा तो चतुर सयानों
जुगत लगा करें सगरे काम
इधर नहीं तो उधर से पकड़े
पकड़े कान मनवाय ले बात !
जबरन हाथ पकड्नो चावे
ऐन केन प्रकारण जी
जब राधे बस मैं नहीं आवे
नित नई जुगत लगावें जी !
ऐसी बंसी बजाई नटखट
राधे सुधबुध भूल गई
हाथ पकड़ खुद ही ले आई
कान्हा निकट बैठायो जी !
"इन्दिरा " देख चकित भई भारी
कान्हा की चतुराई जी
अभी तो भारी रार मची थी
अब नेह गंग बही आई जी !
डा इन्दिरा ✍
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअब नेह गंग बही आई जी !...
ReplyDeleteवाह! ब्रज की जमुना में आपने नेह की गंगा को घोल दिया।अब भला बंशी वेणी में क्यों
ना बंधे, चाहे लाख चतुराई कर ले कन्हाई!
बहुत ख़ूब ....👌👌👌
ReplyDelete