अस्तित्व मेरा 👣
अस्तित्व पा रही माँ तुझ मैं
मेरा विघटन मत करना
श्वास लेऊ और पंख फैलाऊ
इतना बस माँ तुम करना !
अभी अर्ध विकसित सी हूँ
कुछ दिन ध्यान मेरा रखना
कन्या भ्रूण हूँ ठुकरा ना देना
मुझको विघटित ना करना !
भक्षक नहीं रक्षिता है तू
मेरा रक्षण भी करले
मैं भी नारी तू भी नारी
इसी रीती का ध्यान धर ले !
गर पाऊ अस्तित्व पूर्ण तो
जग अभियंता बन जाऊंगी
अग्नि शिखा सम व्याप्त रहूंगी
माँ तेरा आभार मनाउगी !
डा इन्दिरा ✍
वाह उम्दा इंदिरा जी शुभकानाएं
ReplyDelete🙏आभार सुप्रिया जी
Deleteआप की रचना की समिक्षा के लिये शब्द नही मिलते पर होती लाजवाब है
ReplyDeleteशुक्रिया भाई कविता सार्थकता पाई !
ReplyDeleteअति नेह आपका है सखी उस पर सुन्दर जज्बात ! सार्थक हो गई लेखनी सुन आपकी बात !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 30 अप्रैल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहद सुंदर ! माँ साथ दे तो कौन रोक सकता है बेटी को आगे बढ़ने से ?
ReplyDeleteलाजवाब सुंदर बेहतरीन रचना
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