जीवन गणित ?+=%
जीवन कब क्यूँ बीत गया
सोच रही बैठी निष्काम
हर एक झुर्री कहती है
उसके जीवन का संग्राम !
बुझी बुझी पलकों मैं अब भी
कुछ गीला सा रुका हुआ
सूखे अधरों पर अब भी है
लोरी के कुछ छंद जवां !
हाथ लरजते है जब अब भी
देने को आशीष
खाली हवा सी बह जाती है
तले नहीं होता कोई शीश !
क्या खोया क्या पाया मेने
उठ रहे सवाल पर सवाल
कहाँ जोड़ना कहाँ घटाना
कहाँ बिगड़ गया हिसाब !
ज्यादा कहाँ कहाँ कम रखा
कहाँ चूक गई मैं आप
लगा रही ममता निशब्द सी
पूरे जीवन का गुणा भाग !
डा इन्दिरा ✍
वाह.. अति उत्तम, बहुत खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteअतुल्य आभार रेनू जी
Deleteवाह डॉक्टर साहिबा क्या
ReplyDeleteखूब गणित लगाया
और एक गणित में ही जैसे
सारा जीवन समझाया
गागर में सागर भरना खूब आता है आप को
शुक्रिया सखी नीतू dr हूँ पर वणिक बुद्धि है
Deleteगुणा भाग आसान
जीवन ने कुछ इस तरह सिखाया
सीख गये ये ज्ञान !
सुन्दर हिसाब किताब!!!
ReplyDeleteयही जिंदगी है साहब
Delete🙏🙏🙏
गुणा भाग कितना भी करलो अंत मे सब शून्य है ,
ReplyDeleteअजर अमर होते शाश्वत ये पल हैं ,
इनका ना कोई जमा जोड ना कोई है तोड
अबाध गति जीवन की, हर एक रूकता इस मोड़।
यथार्थ रचना जीवन गणित की।
शुक्रिया मीता ...
ReplyDeleteयही सुखद अनुभूति है अंत भाव बस शून्य
अंत काल कुछ बच जाता तो हिसाब ना होता पूर्ण !
Wah natmastak di kya khoob panktiyan
ReplyDeleteशुक्रिया , प्रियंका श्री ....ये जिंदगी का हिसाब है सही गलत दोनों ही खास है ! आपने सराहा सार्थक हुआ
DeleteWah natmastak di kya khoob panktiyan
ReplyDeleteकभी कभी कोई बात हृदय छू जाती है तब हृदय की पीड़ा अभिव्यक्ति बन जाती है !
Deleteआभार
आभार भाई अमित जी ...काव्य की आत्मा को पहचाना मन तुष्ट हुआ क्लिनिक पर अक्सर ऐसे व्यक्ति और उनकी जीवन कथा सुनने को मिलती रहती है .मन व्यतिथ सा हो उठता है उनकी खाली आंखों का सूनापन अंदर तक चीर जाता है ! जब तक वो पीड़ा व्यक्त ना करूं मन उद्वेलित सा रहता है ! उसी एक पीड़ा का परिणाम है ये जीवन गणित !
ReplyDeleteअतुल्य आभार पढ़ा और सराहा !
ज़िंदगी के अंतिम पड़ाव पर जीवन का हिसाब किताब वाह
ReplyDeleteमूक कर गयी आपकी ये रचना