नारी जीवन तपन दुपहरी !
नारी जीवन भरी दुपहरी
तप्त अलाव सी जलती जाय
तपन घनेरी झुलसे तन मन
अगन जलन के भाव जगाय!
निपट अकेली रेत पजरती
पल कू छाँव ना , हलक सुखाय
त्रसित भाव से गला चटखता
बूँद छाँव की मिले ना हाय !
क्रंदन है मन द्वंद मचा है
कौन अधिक नारी पजराय
भरी दोपहरी या अभिलिप्सा
जेठ मास दोनों हुई जाय !
मुट्ठी भर छाँव ना मिले
नेह छाँव को मन तरसाय
सर पर धूप पग रेत धंसे है
किस ठौर रुकी जीवन की राह !
डा इन्दिरा ✍
बहुत ही सुंदर, नारी व्यथा को उकेरती मन को झकझोरती, रचना....
ReplyDeleteअतुल्य आभार
Deleteनारी जीवन का बेहद सजीव वर्णन सखी
ReplyDeleteआभार सखी मलती जी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
सोमवार 28 मई 2018 को प्रकाशनार्थ साप्ताहिक आयोजन हम-क़दम के शीर्षक "ज्येष्ठ मास की तपिश" हम-क़दम का बीसवां अंक (1046 वें अंक) में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
कष्टों से घिरी नारी का जीवन और ज्येष्ठ की तपन....बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवाह!!!
वाह्ह.।क्या तालमेल किया आपने अलग चिंतन...बहुत सुंदर रचना इन्दिरा जी।
ReplyDeleteवाह वाह नारी तेरा जीवन जलती दुपहरी ।
ReplyDeleteअप्रतिम रचना
एक तरफ ज्येष्ठ की तपन और दूसरी तरफ प्रिय के स्नेह के अभाव में सुलगता नारी मन.... तुलनात्मक ढ़ंग से सुंदर छंदकाव्य में पिरोया है आपने....सादर बधाई।
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