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बदरा भये सुरँगी

बदरा भये सुरँगी ....

गरज लरज ये कौन आ रहा
कौन आवन की बजे दुंदुभी
भगदड़ सी मच रही नभ माही
जल भर बदरा भये सुरँगी !

पुरवाई भी छेड़न लागी
पात पात से खेलन लागी
पुहुप बिहँस करें सब बतिया
कौन आ रहा हमरी गलियां !

कहीं कुहुक बोले कोयलिया
पंचम स्वर बोले रे पपीहरा
आद्र स्वर मयूर मुख बोले
मेहर आओ सरसे पावसिया !

बूंद एक चातक खग  मांगे
त्रसित भाव पावस ऋतु जागे
वर्षों मेघ धरा तर करदो
तृप्त होय सब प्यासी नजरिया !

त्रसित भाव सब सरसन लागे
ज्यू विरहन घर आये संवरिया
बरसों मेघ धरा हरियाई
हरी है गई धानी चुनरिया !

डा. इन्दिरा ✍

Comments

  1. वाह वाह दीदी जी
    मेघ भी बस आपको पढ़ने की चाह में आए हैं
    बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेहिल आभार आँचल मेघ साथ आप भी आई प्रतिक्रिया सरस भाव सी लहराई

      Delete
  2. वाह सरस सा गीत मधुर जैसे मेघ मल्हार
    हर घट तृप्त हुवा ज्यों बरसी अमि फूहार ।
    बहुत सरस मीता ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्नेहिल आभार मीता प्रतिक्रिया ने लेखन भाव सरसा दिया शुक्रिया

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  3. बर्षा ऋतु सजीव चित्रण, बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार अभिलाषा जी सजीवता पाठक के भावों में होती है लेखन तो सिर्फ शब्द है ! ...आपकी प्रतिक्रिया ने सजीव कर दिया लेखन ! नमन

      Delete

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