बेजान मृग नयनी आंखों को समर्पित ..🙏🌺
शब्द मौन है
आँख नम है
लफ्ज नहीं
कुछ लिख पाऊ !
मन की पीड़ा
आप समझ लो
बस बूँद बूँद
बहती जाऊ !
जा तन लागे
वा तन जाने
या जाने
माँ की जाई !
पीर उठी
हिय चाक
हो रहा
पर होनी को
का कहे भाई !
पर .....☝☝☝
एक राह बन्द
होती तो
दूजी सौ
खुल जाती है
कुदरत का तो
यही नियम है
राहें बनती ही
जाती है !
तनि तो धीर
रखो सखी मेरी
हृदय नयन से
तुम निरखो
सुगबुगाहट सी
द्रग होती
नई प्रभाती
आने को !
डा इन्दिरा .✍
25 .8 .2018
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना आदरणीया
ReplyDeleteआभार
Deleteअतिसुन्दर
ReplyDeleteवाह !!! बहुत ही सुंदर 👌👌👌
ReplyDelete🙏🙏
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