धरती पुत्र....
धरती पुत्र कहते है मुझको
पर मेरी कोई धरा नही
माता का अहसास तो है पर
माता मेरे पास नही ॥
मेंं अति निर्धन गरीब पुत्र हूँ
नही पास है धन मेरे
पुत्र अमीर जो रहे हवेली
माता गिरवी वो रखते !
एक तो निर्धन उस पर रूठे है घन
नही बरसते मेरे हित मेंं
वक़्त बेवक्त बरस जाते है
मुझ निर्बल के जीवन मेंं !
मन पीड़ा अविराम बह रही
सहन नही जब कर पाता
भूख पेट की, चटख गले की
जब कुछ सहा नही जाता !
आत्मघात करता हूँ तब मेंं
जब पीड़ा से भर जाता हूँ
नही राह दिखती है कोई
तब मृत्यु की राह पकड़ता हूँ !
क्षमा , क्षमा हे मात क्षमा कर
भाग्य हीन है पुत्र तेरा
धरती पुत्र कहाता हूँ मेँ
पर रहा अभागा सुत तेरा ॥
डॉ इन्दिरा गुप्ता
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