बिटिया दिवस
जितनी संकुचित सोच हैं
उतना अधिक दिखावा हैं
बिटिया दिवस मनाते हैं हम
नित जिसे कोख मेंं मारा हैं ।
नक्कारखाने मेंं तूती जैसी
एक दिवस बिटिया का हैं
बाकी साल उसे मारते
कैसी अजब विडम्बना हैं ।
वंश वृध्दि का चाव बहुत हैं
पर बेटी ना केवल बेटा हो
अरे नासमझ ये तों सोचो
बेटी ना तों कैसे बेटा हो ॥
बहू सभी को सुघड़ चाहिऐ
बेटी को कहते अभिशाप
बेटी नही तो बहू कहाँ से
धरा फाड़ प्रगटेगी आप ।
बेटी होती धरा स्वरूपा
अंकुरित होय संपन्न करती
बेटा बेटी एक बराबर पर
ये व्याकरण याद नही होती ।
उठो बेटियों यज्ञ बनो अब
शंखनाद का स्वर छेडो
सहचरी नही अब आगे बढ़
रथ को स्वंय हांकना हाको ।
कोमल गात सुकुमार नही तुम
लोचन लाल रक्ताभ करो
हाथ चूड़ियाँ ज्वाला जैसी
श्वास श्वास मेंं आग भरो ।
पायल बिछिया झूमर टंनका
ये सब श्रृंगार तुम्हारा हैं
नर भक्शी का संहार करो
पहला कर्तव्य तुम्हारा हैं ।
चारु चन्द्र सी कोमल काया
चन्द्र हास सा मुखर सरल
छूले तों रण चण्डी बन जा
कांप उठे दुष्टों का दल ।
सदा अवज्ञा रही तुम्हारी
त्रेता, द्वापर , कलयुग मेंं
सहने को कायरता समझा
इस भूमी के हर नर ने ।
नही नही अब और नही
अब और अवज्ञा मंजूर नही
खुद संभाल खुद सँभल खड़ी हो
शंका तज तू लाचार नही ।
तू नर्तन हैं तू तर्पण हैं
तू शिव ग़ोरी नारिश्वर हैं
तुझसे रचा ब्रण्हाण्ड पिण्ड ये
तू काल चक्र का दर्पण हैं ।
तू जननी तू जन्म काल हैं
तुझसे डरता महा काल हैं
तू सावित्री तू ही गार्गी
तुझसे जन्मा वेद काव्य हैं ।
तू द्योतक सगुण निर्गुण का हैं
तू संवाहक पीड़ापन का हैं
तुझमें बहता हैं अमि गरल
तू सृजनशील , संहारक हैं ॥
डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ
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