वीर बहुटि
महारणा प्रताप की बेटी चम्पा ✊
राणा लेकर परिजनो को
वन वन भटक रहे थे
संधि मंजूर नहीँ मुगलों से
वनवास काट रहे थे ।
जंगल जंगल फिरते थे
भूखे प्यासे चिंतित से
घास की रोटी खाते
झरने का पानी पीते ।
नन्ही बालिका चम्पा
उम्र अभी कच्ची थी
राणा की प्यारी बेटी थी
भाई कें संग खेलती थी ।
राणा का ही लहू बह रहा
चम्पा की रग रग मेंं
विचलित नहीँ होती थी तनि भी
संकट काल घड़ी मेंं ।
समझ विवशता पिता की
नन्हे अमर को समझाती
जंगल मैं क्यों फिरते हैं
थी पूरी बात बताती ।
एक दिवस अतिथि आया
राणा दुखी भोजन नहीँ कराया
तुरन्त चम्पा ने घास की रोटी
रख अतिथी का थल लगाया ।
भोली बालिका हँस कर बोली
कल की रोटी हूँ लाई
भाई कें लिये उठा कर रखी
अब आप अरौगे ये भाई ।
कह चम्पा ने थाल उठा कर
अतिथी को .पकड़ाया था
देख कें राणा द्रवित हो गये
आँखो मैं पानी आया था ।
सोचा राणा ने सन्धी कर लू
कागज तभी मंगाया
हार मानता हूँ अकबर से
ये भाव तभी मन आया ।
देखा चम्पा ने द्रवित पिता को
सिंहनी सी हुँकार उठी
सन्धी नहीँ युद्ध करेगे
कटार चाहिऐ मुझे अभी ।
वो कौन हैं जिसने छीन लिया
सब राज पाट हैं अपना
वो दुश्मन मुझे बता दो
सर कलम करू मेंं उसका ।
पराधीन नहीँ होगे हम
कह कर चम्पा चिल्लाई
राणा की गोदी से उछल पड़ी
वो क्षत्राणी की जाई ।
आँखो मेंं रक्त उबलता था
छाती तेज श्वास भरती थी
रण चण्डी अवतरित हुई हो
ऐसी भासित होती थी ।
क्षणिक मोहे के खातिर क्या
हम अकबर के दास बनेगे
अजर अमर नहीँ हैं कोई
हमे जीवित मरण सहेंगे ।
इतना कहकर दुर्बल काया
निश्तेज हो गईं गिर कर
प्राण त्याग दिये चम्पा ने
पर झुकि नहीँ रत्ती भर ।
कहते हैं राणा ने उस पल
वादा चम्पा से किया था
मरते मर जाऊंगा बेटी
पर सन्धी नहीँ करूंगा ।
ऐसा मजबूत कलेजा लेकर
जहाँ बच्चियां जनमती हैं
भारत माँ सिंहनी की जननी
शत शत नमन हम करते हैं ।
जब जब चम्पा जैसी कन्या
भारत भूमी पर उतरेंगी
शोणित बीज ना उगने देगी
रक्त से खप्पर भर देगी ।
वीर पिता की वीर सुता थी
पल भर को हार ना मानी
जंगल जंगल भटकी चाहे
ना सन्धी की मन मेंं ठानी ॥
ऐसी सुभट वीर बालाये
जब भारत की प्रहरी हो
बाल ना बांका करने पाये
चाहे दुश्मन कितना बैरी हो ।
डा .इन्दिरा गुप्ता यथार्थ
(मौलिक रचना )
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
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