वक़्त का खेल ही तो हैं
नाजुक बदन
सहेजने की जगह
रौंदा गया
जीवित पर
डाला गया
तेजाब
क्यों
वक़्त का खेल ही तो हैं ....
व्यभिचार
बढ़ता गया
व्याभिचारी
बचता रहा
मुकदमे तारीखें
बदलते सब
वकील
जज
वक़्त का खेल ही तो हैं ..
दिन महीने
सालों बीते
बात
वहीँ की वहीँ
तिल भर
ना आगे
बढ़ी
बात
वक़्त का खेल ही तो हैं ....
नाम चेहरे
बदलते रहे
नारी
वहीँ की वहीँ
दहशत
दहशतगर्दी
वहीँ की वहीँ
वक़्त का खेल ही तो हैं ....
सीता अहिल्या
पांचाली
निर्भया पिंकी
या प्रियंका
अदभुत समन्वय
हर बार
नारी
ही
वक़्त का खेल ही तो हैं ...
डॉ़ इन्दिरा गुप्ता यथार्थ
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