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सतरंगी देह ...

..सतरंगी सी देह 

वीरहन को याद आ रहा साजन का भुजपाश 
अगन लगाऐ देह मेंं मन मेंं खिला पलाश । 

सवारियां रंगरेज ने की रंगरेजी खूब 
फागुन की रैना गईं रंग मेंं डुबम डूब । 

सतरंगी सी देह पर चूनर है पचरंग 
तन मेंं बजती बांसुरी मन मेंं बजे मृदंग । 

जवां कुसुम के फूल से लाल हो गये नैन 
टेसू मद भरता फिरे मन घूमे  बैचेन  । 

बरजोरी कर लिख गया भीगे तन पर छन्द 
ऊपर से रूठी दिखे मन बरसे आनन्द  । 

डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता  यथार्थ 

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