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केसर धार

केसर की  धार .....

बरसाने बरसन लगी नौ मन केसर धार 
बृज मंडल मेंं छा गयो होली कौ त्यौहार । 

लाल हरी नीली हुई नखरैली गुलनार 
रंग रंगीली हो गई रंगों की बौछार । 

आँखन में महुआ भरा साँसों मेंं मकरंद 
साजन दोहे से लगे ग़ोरी लगती छन्द । 

कस के हँस के जीत ली रंग रसिया ने रार 
होली ही  हिम्मत हुई होली ही हथियार । 

होली , होली मेंं होली , होनी थी जो बात 
होले से हँस ली हँसी कल फागुन की रात । 

होली पर घर आ गये सखी री मोरे भरतार 
कंचन काया की कली किलक हुई कचनार । 

केसरिया बालम लखे हँसे ग़ोरी को अंग 
ग़ोरी भीजी तर भई सांवरिया के रंग । 

देह गुलाबी कर गया फागुन का उपहार 
सांवरिया ने कस के मारी पिचकारी की धार । 

डॉ़ इन्दिरा  गुप्ता  यथार्थ 


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